मृगतृष्णा
दश्त में चले जा रही हूँ
ever hopeful, ever striving
मेरा रिश्ता पानी से नहीं
प्यास से है
मेरा नाता मिलन से नहीं
उसकी आस से है
सम्बंध अब जान से नहीं
हर इक साँस से है
मोह जीवन से नहीं
जीने के अहसास से है
शुक्रगुज़ार हूँ उन चाहतों की
जिन्होने तड़पाया है
सर आँखों पर हैं वह उम्मीदें
जिन के सहारे रेगिस्तान
पार हो पाया है
without the mercy of mirages
कदम नहीं उठते,
फ़ासले नहीं टलतें
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दश्त में चले जा रही हूँ
धड़कनों को बुलंद रखे
ऐसे अगर मर भी जाऊं
तो कोई गिला नहीं
चाहत के सिवा अब मेरा
और कोई सिलसला नहीं
without the mercy of mirages
कदम नहीं उठते,
फ़ासले नहीं टलतें
झूठी ही क्यों न हो मेरी आस
है वो मेरे दिल के कितने पास
सिर्फ़ हमारे सपने ही तो अपने हैं
और कौन है जिस पर है
विश्वास
Tuesday, November 3, 2009
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7 comments:
ये एक सबसे बड़ा प्रश्न है......
Your Hindi poems make me want to master the language but reading your poems, no matter what I miss, the essence is always realised.
Will read them again Manjul....
....just came back to say that kalamdawaat has become technically much better because of turning bilingual. Smart move Manjul
Ek geet yaad aa gaya.." aankon me samandar hai, aashaaon kaa paanee hai, zindagee aur kuchh bhee nahee, teree meree kahanee hai"
Lovely.
प्रिय मंजुल ,
आज पढ़ी तुम्हारी मृग तृष्णा ,अच्छी लगी ,समर्पण पर एक प्रयास शुरू किया है पढ़ कर बताना कोई आकर लेगा ?
bahot sunder likhi hain aap.
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