Friday, October 10, 2008

Nahin Chahiye

नहीं चाहिए


नहीं चाहिए यह बुद्धि मुझे,
नहीं यह विवेक
किस काम के हैं ज़हन और ज़मीर
गर सब का दाता है एक?

यह बता मुझे, ए खुदा
सब तरफ़ तू ही है ना छाया,
यह सारा जग तेरी ही तो है माया
फ़िर धर्म-अधर्म, न्याय-अन्याय
का स्वांग यह तूने क्यों रचाया
यह सही और ग़लत का भेद
तूने मेरे सर क्यों जमाया?

बता मुझे
क्यों चढूँ पहाड़ कोई
जब वादी में भी तू है
क्यों करूँ मौजों से मुक़ाबला
जब साहिल पर भी तू है
क्यों बनूँ विजयी मैं
जब शिकस्त में भी तू है
क्यों खोजूँ हरदम उजाले मैं
जब रातों के साए में भी तू है?
क्यों निभाए मोहब्बतें कोई
जब रुखसत और तनहाई में भी तू है
क्यों करें कोई दवा दारू
जब दर्द में भी तू है
क्यों करें हम कोई प्रयास
आलस में भी तो तू है
जियें क्यों हम शांति-अमन से
जब आतंकवाद में भी तू है
बता ना मौला
क्या मुनाफ़ा और क्या नुकसान
जब सारा हिसाब-किताब ही तू है?

सच, वापिस लेले यह बुद्धि और विवेक
नहीं यह मेरे किसी काम के देख
देना है कुछ तो बदले में भेज देना
अपार प्रेम और अटूट संवेदना

डूब जाऊँ उसमें और डुबा दूँ जहाँ तेरा
डूब जाऊँ उसमें और डुबा दूँ जहाँ तेरा