Tuesday, November 3, 2009

Mrigtrishna

मृगतृष्णा


दश्त में चले जा रही हूँ
ever hopeful, ever striving
मेरा रिश्ता पानी से नहीं
प्यास से है
मेरा नाता मिलन से नहीं
उसकी आस से है
सम्बंध अब जान से नहीं
हर इक साँस से है
मोह जीवन से नहीं
जीने के अहसास से है
शुक्रगुज़ार हूँ उन चाहतों की
जिन्होने तड़पाया है
सर आँखों पर हैं वह उम्मीदें
जिन के सहारे रेगिस्तान
पार हो पाया है
without the mercy of mirages
कदम नहीं उठते,
फ़ासले नहीं टलतें

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दश्त में चले जा रही हूँ
धड़कनों को बुलंद रखे
ऐसे अगर मर भी जाऊं
तो कोई गिला नहीं
चाहत के सिवा अब मेरा
और कोई सिलसला नहीं
without the mercy of mirages
कदम नहीं उठते,
फ़ासले नहीं टलतें
झूठी ही क्यों न हो मेरी आस
है वो मेरे दिल के कितने पास
सिर्फ़ हमारे सपने ही तो अपने हैं
और कौन है जिस पर है
विश्वास